Monday, September 28, 2015

Namkaran Sanskar, vidhi Naming the child

Namakaran (Naming the child)

What is Namkaran Sanskar - 

The name for the baby is selected such that its meaning can inspire the child to follow the path of righteousness.

In India people of different casts and religions have their own way of performing the baby naming ceremony / Naamkaran. Hindus follow different rituals and procedures for performing the naming ceremony of the new born. Right from choosing a baby name to placing the baby in the cradle, every thing is carried out by following the rituals. Hindus believe that the baby naming ceremony should be carried out by following proper rituals to bestow baby with a good life.

These days when a baby is born Some parents usually do not consult any astrologer and whatever names appeals to them, they go for it and name the baby. I would like to make a point here that Naamkaran Sanskaar has been a very old tradition which was set by our great sages centuries ago. In 16 Hindu Sacraments - Naamkaran vidhi is 5th most important Sanskar. 

Namkaran Sanskar becomes important to choose a name as per the favorable nakshtras and planets because this will be the name with which the child will be known throughout his/her life and the name will impact the child throughout the life. Many aspects are considered while naming the baby. The day and time of the baby naming ceremony is known as 'Shubh Mahurat' which is an auspicious time for naming the baby. The letter with which the baby is named is normally decided based on his / her Kundali, birth time, positions of stars and planets.

Best best day for the Naamkaran ceremony is 10th, 12th or 16th day of the child's birth. If this is not possible then any other auspicious day should be chosen.

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Change your views , you can change your future

Change your views , change your future

By changing your views you are able to change your future.

Tuesday, July 14, 2015

Yoga's In Kundli

In Vedic astrology, yogas are very important as it affects the whole life of a person. Kundli reveals the whole life of a person, but many times questions asked regarding different types of yogas in a horoscope. Yogas are formed by the combinations of planets in a particular place in a horoscope. Many types of combinations are formed and they form different yogas which are very important sometime to understand a horoscope or a person's life. To know which Yoga are there in your kundli click on Below button to order your Report..

Saturday, June 27, 2015

पद्मिनी एकादशी व्रत कथा महात्मय (Padmini Ekadashi Vrat Katha)

पद्मिनी एकादशी व्रत कथा महात्मय 
(Padmini Ekadashi Vrat Katha)


पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadasi)  भगवान को अति प्रिय है । इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक को जाता है । इस व्रत के पालन से व्यक्ति सभी प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्चर्या का फल प्राप्त कर लेता है। इस व्रत की कथा के अनुसार:

श्री कृष्ण कहते हैं त्रेता युग में एक परम पराक्रमी राजा कीतृवीर्य था। इस राजा की कई रानियां थी परतु किसी भी रानी से राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद दु:खी रहते थे। संतान प्राप्ति की कामना से तब राजा अपनी रानियो के साथ तपस्या करने चल पड़े। हजारों वर्ष तक तपस्या करते हुए राजा की सिर्फ हडि्यां ही शेष रह गयी परंतु उनकी तपस्या सफल न रही। रानी ने तब देवी अनुसूया से उपाय पूछा। देवी ने उन्हें मल मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा.

अनुसूया ने रानी को व्रत का विधान भी बताया। रानी ने तब देवी अनुसूया के बताये विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरे बदले मेरे पति को वरदान दीजिए। भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा। राजा ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो जो तीनों लोकों में आदरणीय हो और आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो। भगवान तथास्तु कह कर विदा हो गये। कुछ समय पश्चात रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। कालान्तर में यह बालक अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ जिसने रावण को भी बंदी बना लिया था।

पद्मिनी एकादशी व्रत विधान (Ekadashi Vrat Vidhi):

भगवान श्री कृष्ण ने एकादशी का जो व्रत विधान बताया है वह इस प्रकार है। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत होकर भगवान विष्णु की विधि पूर्वक पूजन करें। निर्जल व्रत रखकर पुराण का श्रवण अथवा पाठ करें। रात्रि में भी निर्जल व्रत रखें और भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। रात्रि में प्रति पहर विष्णु और शिव की पूजा करें। प्रत्येक प्रहर में भगवान को अलग अलग भेंट प्रस्तुत करें जैसे प्रथम प्रहर में नारियल, दूसरे प्रहर में बेल, तीसरे प्रहर में सीताफल और चथे प्रहर में नारंगी और सुपारी निवेदित करें।

द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की पूजा करें फिर ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें इसके पश्चात स्वयं भोजन करें। इस प्रकार इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य जीवन सफल होता है, व्यक्ति जीवन का सुख भोगकर श्री हरि के लोक में स्थान प्राप्त करता है।

Wednesday, May 6, 2015

स्त्रियां जो शास्त्रों में अच्छी मानी जाती हैं

स्त्रियां जो शास्त्रों में अच्छी मानी जाती हैं 
  • जो मीठे वचन बोलती है। जिसकी आवाज में मधुरता हो और जो हर किसी से स्नेहिल वाणी में व्यवहार करती हो।  
  • आस्तिक, सेवा भाव रखने वाली, क्षमाशील, दानशील, बुद्धिमान, दयावान और कर्तव्यों का पालन पूर्ण निष्ठा से करने वाली लक्ष्मी का रूप होती है।
  • जो स्त्री तन से अधिक मन से सुंदर हो।
  • जो घर आए मेहमानों का स्वागत सत्कार करे। 
  • पराया दुख देखकर दुखी हो अपनी सामर्थ्य के अनुसार सहायता करे।
  • घर की रसोई में भेद-भाव किए बिना समान रूप से सभी को भोजन परोसे। 
  • जो प्रतिदिन स्नान करके साफ और स्वच्छ वस्त्र पहन कर रसोई घर में प्रवेश करती है। 
  • सुबह शाम घर में देवी-देवताओं के सामने धूप, दीप और सुंगधित अगरबत्ती जला कर पूजा-पाठ करती है।
  • तिव्रत धर्म का पालन करे। अपना और पति का अपमान सहन न करे।
  • धर्म और नीति के मार्ग पर चलने के लिए पारिवारिक सदस्यों को प्रेरित करे। जो निर्भिक हो और अपनी बात कहने का साहस रखे। 
स्त्रियां जो शास्त्रों में अच्छी नहीं मानी जाती हैं 
  • जो स्त्री मैली-कुचैली सी रहती है। 
  • जो पाप कर्मों में रत रहती है, पराये पुरुषों में जिसका मन रमता है।
  • जो बात-बात पर गुस्सा करती है, जो छल-कपट या मिथ्या भाषण करती है। जो व्यभिचार करती है। 
  • जो अपने घर को संवार कर नहीं रखती, जिसके विचार उत्तम नहीं होते।
  • जो अपनी संतान से स्नेह नहीं रखती। 
  • जो सिर्फ अपने बारे में सोचती है।
  • जो दूसरो के घरों में झगड़ा लगाने की ताक में रहती है। जो आपराधिक गतिविधियों में शामिल होती है। 
  • जो इधर की बात उधर करती है। 




Tuesday, May 5, 2015

नीच का गुरु अलग अलग भाव में उपाय और प्रभाव

गुरु के उपाय और प्रभाव
प्रथम भाव
लग्न में नीच का गुरु शरीर में दुर्बलता तथा बाहरी व्यक्तियों से असंतोष पैदा कराएगा। विद्या-बुद्धि में त्रुटिपूर्ण सफलता मिलेगी। स्त्री सुख व व्यवसाय में सफलता मिलेगी। यदि आपको प्रथम भाव में स्थित नीच गुरु के कारण उक्त परेशानियां हों, तो निम्न उपाय करें :
उपाय : गाय, जरूरतमंदों की सेवा करें।
द्वितीय भाव
द्वितीय भाव में नीच गुरु धन हानि करेगा तथा वाणी पर संयम नहीं होने के कारण कुटुंबजनों से मतभेद कराएगा। शारीरिक सुख व स्वास्थ्य में कमी करेगा। माता और भूमि पक्ष कमजोर रहेगा। पिता, राज्य व व्यवसाय के पक्ष से सुख, सम्मान, सहयोग तथा लाभ की प्राप्ति संभव है।
उपाय : दान दें। घर के बाहर सड़क पर गड्ढा हो तो भरवाएं। सांपों को दूध पिलाएं।
तृतीय भाव
तृतीय भाव में नीचगत गुरु के प्रभाव से भाई-बहन से परेशानी व पराक्रम में कमजोरी रहेगी। व्यापार में परेशानी परंतु भाग्योन्नति व धर्मपालन में रुचि बढ़ेगी। आय बढ़ेगी। ऐसा व्यक्ति सुखी व धनी होता है।
उपाय : मां दुर्गा की पूजा करें। कन्याओं को भोजन कराएं, दक्षिणा दें।
चतुर्थ भाव
इस भाव में स्थित नीच का गुरु भूमि, मकान तथा मातृसुख में कमी करेगा। भाई-बहनों से असंतोष होगा और शत्रु पक्ष से परेशानी बढ़ेगी। राज्य, पिता एवं व्यवसाय द्वारा सुख एवं सफलता की प्राप्ति तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
उपाय : घर में मंदिर नहीं बनवाएं। बड़ों का आदर करें। सांप को दूध पिलाएं।
पंचम भाव
नीचगत गुरु संतान पक्ष से कष्ट का अनुभव और बुद्धि के क्षेत्र में त्रुटि देगा। स्त्री और माता के पक्ष से कमजोरी रहेगी। भाग्य एवं धर्म की वृद्धि होगी। आय बढ़ेगी, परन्तु मानसिक तनाव भी बढ़ेगा। शक्ति एवं मान-प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
उपाय : किसी से उपहार नहीं लें। साधु तथा पुजारी की सेवा करें।
छठा भाव
इस भाव में स्थित नीच गुरु के कारण शत्रु पक्ष से परेशानी हो सकती है। संतान तथा विद्या-बुद्धि के क्षेत्र में कमजोरी रहेगी। दैनिक जीवन के सुख में कमी रहेगी। राज्य व व्यवसाय में सफलता मिलेगी। पिता से मतभेद बढ़ेगा। बाहरी व्यक्तियों का सहयोग मिलेगा।
उपाय : गुरु से संबंधित वस्तुओं का दान करें। मुर्गियों को दाना डालें।
सातवां भाव
सप्तम भावगत नीच गुरु के प्रभाव से व्यवसाय तथा स्त्री पक्ष से कष्ट रहेगा। शत्रुओं द्वारा व्यवसाय मे हानि हो सकती है। परिश्रम द्वारा लाभ तथा पराक्रम में वृद्धि से सफलता मिलेगी।
उपाय : शिवजी की पूजा करें। पीले कपड़े में सोने का टुकडा बांधकर साथ रखें।
आठवां भाव
आयु व पुरातत्व संबंधी कठिनाइयां हो सकती हैं। स्त्री, पिता व व्यवसाय के पक्ष में कष्ट का अनुभव होगा। उदर तथा मूत्र विकार का सामना करना पड़ सकता है। खर्च में वृद्धि होगी।
उपाय : बहते पानी में नारियल डालें। श्मशान में पीपल का पेड़ लगाएं। घी का दान करें।
नवां भाव
नीचगत गुरु के कारण भाग्य में कमजोरी, धर्म पालन में त्रुटि तथा आमदनी की कमी से दुख का अनुभव होगा। परिश्रम द्वारा स्वयं के प्रभाव में वृद्धि होगी। संतान से कष्ट तथा विद्या, उन्नति, प्रतिष्ठा व ऐश्वर्य में कमी होगी ।
उपाय : प्रतिदिन मंदिर जाएं, शराब का सेवन नहीं करें। बहते पानी में चावल बहाएं।
दशम भाव
इस भाव में नीच का गुरु हो तो पिता तथा राज्य पक्ष से हानि की संभावना बन सकती है। भाग्योन्नति में रुकावट, कुटुंबजन से कष्ट तथा धन का अल्प लाभ मिलेगा। माता, मकान तथा वाहन सुख मिलेगा। शत्रुओं पर विजय मिलेगी।
उपाय : बहते पानी में तांबे का सिक्का डालें। बादाम दान करें। घर में मूर्तियों के साथ मंदिर नहीं बनाएं।

ग्यारहवां भाव
इस भाव में नीच गुरु से आमदनी में कमी तथा भाग्योन्नति में रुकावट के योग बनेंगे, परन्तु पराक्रम तथा भाई-बहनों के सुख में वृद्धि होगी। संतान पक्ष की उन्नति, विद्या-बुद्धि में लाभ, सुंदर स्त्री तथा सुख सहयोग की प्राप्ति होगी।
उपाय : गले में सोने की चेन और तांबे का कड़ा हाथ में पहनें। पीपल का पेड़ सींचें।

बारहवां भाव
यहां पर मकर राशि में स्थित नीच का गुरु खर्च बढ़ाएगा, बाहरी व्यक्तियों से संबंध बनाने में परेशानी पैदा करेगा, संचित धन का अभाव तथा परिवारजनों से असंतोष कराएगा। माता, भूमि तथा मकान सुख में त्रुटिपूर्ण सफलता मिलेगी। झगडों एवं विवादों में परेशानियों के साथ सफलता मिलेगी।
उपाय : पीपल के पेड़ में पानी दें। संतपुरुषों की सेवा करें। रात्रि में सोते समय सौंफ व पानी पलंग के नीचे सिराहने की तरफ रखें।

Sunday, March 15, 2015

विक्रम संवत् 2072 - 21 मार्च 2015 - शनिवार



शनिवार, 21 मार्च 2015 से नव वर्ष विक्रम संवत् 2072 प्रारंभ हो रहा है। इसी दिन से देवी मां की आराधना का विशेष पर्व चैत्र नवरात्र भी प्रारंभ हो रहा है और इस दिन गुड़ी पड़वा भी है। नए हिंदी वर्ष का नाम कीलक होगा एवं इसका राजा शनि एवं मंत्री मंगल होगा। नए वर्ष का प्रवेश लग्न कर्क है, जिसमें गुरु वक्री है, पूरे वर्ष राजा शनि, अपने शत्रु मंगल के स्वामित्व वाली राशि वृश्चिक में रहेगा। मंगल इस वर्ष का मंत्री भी है, जो कि विभिन्न राशियों में विचरण करता हुआ राजा शनि पर भी बुरा असर डालेगा। इस कारण सभी 12 राशियों पर शनि एवं मंगल का सीधा असर रहेगा।